गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है
मैं डर रहा हूँ तुझे हाल-ए-दिल सुनाने से|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है
मैं डर रहा हूँ तुझे हाल-ए-दिल सुनाने से|
जाने क्यूँ कुछ कमी सी है,
तुम भी हो मैं भी हूँ
फिर हम क्यूँ नहीं|
कुछ फासले ऐसे भी होते हैं जनाब…..जो तय तो नहीं होते ,मगर ….नजदीकियां कमाल की रखते हैं
बड़ा मुश्किल है जज़्बातो को शायरी में बदलना,
हर दर्द महसूस करना पड़ता है यहाँ लिखने से पहले..
दर्द बयां करना है तो शायरी से कीजिये जनाब..
लोगों के पास वक़्त कहाँ एहसासों को सुनने का…
क्या खूब होता जो यादें भी रेत होतीं,
मुट्ठी से गिरा देते पाँवों से उड़ा देते !!
मैं एक क़तरा हूँ मुझे ऐसी शिफ़त दे दे मौला ,
कोई प्यासा जो नजर आये तो दरिया बन जाऊ ।।
माना कि औरों के जितना
पाया नहीं…पर..खुश हूँ कि कभी स्वयं को गिरा कर कुछ उठाया नहीं..
हाथ पर हाथ रखा उसने तो मालूम हुआ,
अनकही बात को किस तरह सुना जाता है !!
ज़रा सी शाम हसीन क्या हुई..
उनकी कमी दिल को खलने लगी..!!