तू छोड़ दे कोशिशें..
इन्सानों को पहचानने की…!
यहाँ जरुरतों के हिसाब से ..
सब बदलते नकाब हैं…!
अपने गुनाहों
पर सौ पर्दे डालकर.
हर शख़्स कहता है-
” ज़माना बड़ा ख़राब है।”
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तू छोड़ दे कोशिशें..
इन्सानों को पहचानने की…!
यहाँ जरुरतों के हिसाब से ..
सब बदलते नकाब हैं…!
अपने गुनाहों
पर सौ पर्दे डालकर.
हर शख़्स कहता है-
” ज़माना बड़ा ख़राब है।”
जब मम्मी डाँट रहीं थी तो कोई चुपके से
हँसा रहा था,
वो थे पापा. . .
❤ जब मैं सो रहा था
तब कोई चुपके से
सिर पर हाथ
फिरा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ जब मैं सुबह उठा
तो कोई बहुत
थक कर भी
काम पर जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ खुद कड़ी धूप में
रह कर कोई
मुझे ए.सी. में
सुला रहा था
वो थे पापा. . .
❤ सपने तो मेरे थे
पर उन्हें पूरा करने का
रास्ता कोई और
बताऐ जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ मैं तो सिर्फ अपनी
खुशियों में हँसता हूँ,
पर मेरी हँसी
देख कर कोई
अपने गम भुलाऐ
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ फल खाने की
ज्यादा जरूरत तो उन्हें थी,
पर कोई मुझे
सेब खिलाए जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ खुश तो मुझे होना चाहिए
कि वो मुझे मिले ,
पर मेरे जन्म लेने की
खुशी कोई और
मनाए जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ ये दुनिया पैसों से
चलती है पर कोई
सिर्फ मेरे लिए पैसे
कमाए जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ घर में सब अपना प्यार
दिखाते हैं पर कोई
बिना दिखाऐ भी
इतना प्यार किए जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ पेड़ तो अपना फल
खा नही सकते इसलिए
हमें देते हैं…
पर कोई अपना पेट
खाली रखकर भी
मेरा पेट भरे जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ मैं तो नौकरी के लिए
घर से बाहर जाने पर
दुखी था पर
मुझसे भी अधिक
आंसू कोई और
बहाए जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
❤ मैं अपने “बेटा ”
शब्द को सार्थक बना सका
या नही.. पता नहीं…
पर कोई बिना स्वार्थ के अपने “पिता” शब्द को सार्थक बनाए जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
दिल को हल्का कर लेता हूँ लिख-लिख कर।
लोग समझते हैं मैं शायर हो गया हूँ।।
बुरी आदतें अगर, वक़्त पे ना बदलीं जायें…
तो वो आदतें, आपका वक़्त बदल देती हैं”…..
जब तक हम ये जान पाते हैं कि ज़िन्दगी क्या है तब तक ये आधी ख़तम हो चुकी होती है.
माँ-बाप का घर बिका तो बेटी का घर बसा,
कितनी नामुराद है ये रस्म दहेज़ भी !!
रुके तो चाँद जैसी है, चले तो हवाओं जैसी है,
वो माँ ही है, जो धूप में भी छाँव जैसी है….?
घड़ी सुधारने वाले मिल जाते हैं,
समय खुद सुधारना पड़ता है.
हज़ारों मिठाइयाँ . . चखी हैं जमाने में . . .
ख़ुशी के आंसू से . . मीठा कुछ भी नहीं ।।
इंसान अपने शरीर की शुगर…
तो चेक करवाता रहता है…
अगर ज़ुबान की कड़वाहट को चेक कराये..
तो सारी समस्या खतम !!! ?