किसी के नहीं होते

आसमां पे ठिकाने किसी के नहीं होते,
जो ज़मीं के नहीं होते, वो कहीं के नहीं होते..!!

ये बुलंदियाँ किस काम की दोस्तों…
की इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जायें….

इस नई उम्र में

इस नई उम्र में प्यार से हारकर
ज़िन्दगी इक अजाना सा डर हो गई!
एक व्यापार था इक लड़ाई सी थी
प्यार में प्यार का एक पल भी न था
प्रीत का जीतना एक कहानी ही है
हारने के सिवा कोई हल भी न था
जो बचा न सकी अपने किरदार भी
वो कथा ही यहाँ फिर अमर हो गई !

एक वो वक़्त था

एक वो वक़्त था जब काना बाँसुरी बजाता और सारी गोपियाँ घर से बहार निकल आती और एक आज है जब कचरावाला आके सीटी मारता है और सब गोपियां घर के बहार…

बिछड़ के भी

बिछड़ के भी वो रोज मिलते है हमसे ख्वाबों में….
ये नींद न होती तो हम कब के मर गये होते….