इस शहर में मजदूर जैसा दर बदर कोई नहीं सैंकड़ों घर बना दिये पर उसका कोई घर नहीं|
Category: दर्द शायरी
मरम्मतें खुद की
मरम्मतें खुद की रोज़ करता हूँ, रोज़ मेरे अंदर एक नुक्स निकल आता है !!
दुरुस्त कर ही लिया
दुरुस्त कर ही लिया मैंने नज़रिया अपना, कि दर्द न हो तो मोहब्बत मज़ाक लगती है!
न रूठना हमसे
न रूठना हमसे हम मर जायेंगे! दिल की दुनिया तबाह कर जायेंगे! प्यार किया है हमने कोई मजाक नहीं! दिल की धड़कन तेरे नाम कर जायेंगे!
निभाते नही है..
निभाते नही है..लोग आजकल..! वरना..इंसानियत से बड़ा रिश्ता कौन सा है..
जो आने वाले हैं
जो आने वाले हैं मौसम, उन्हें शुमार में रख… जो दिन गुज़र गए, उन को गिना नहीं करते…
हर शख्श नहीं
हर शख्श नहीं होता अपने चेहरे की तरह, हर इंसान की हकिकत उसके लहजे बताते है..
दर्द लफ़्ज़ों में
दर्द लफ़्ज़ों में बयाँ होकर भी दर्द ही रहता है, और प्यार ख़ामोश रहकर भी मुस्कुराता है..
ऐसा नहीं कि शख्स
ऐसा नहीं कि शख्स अच्छा नहीं था वो, जैसा मेरे ख्याल में था, बस वैसा नहीं था वो….
एक ही बात सच है
एक ही बात सच है दुनिया में…आप किसी को हमेशा खुश नहीं रख सकते|