तुम बात करते हो इंसानों की,
अरे यहाँ अगरबत्तियों के भी मजहब होते है !!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तुम बात करते हो इंसानों की,
अरे यहाँ अगरबत्तियों के भी मजहब होते है !!
तबाह करके चैन उसे भी कहाँ होगा..
बुझाकर हमे वो खुद भी धुआं धुआं होगा..
जुबां वाले भी आखिर गूंगे बने हुए हैं,
जिन्दा रहेंगे कब तक, मुर्दा जमीर लेकर।
महफ़िल में उन्होंने नज़र क्या उठाई..
हमने उस पर मुकमल गज़ल सुनाई..
मैं ख़ुद को भूलता जाता हूँ और ऐसे में
तिरा पुकारते रहना बड़ा ज़रूरी है|
तुम शिकायतों का रिवाज़ खत्म कर दो…
हम शिकायतों की वज़ह खत्म कर देते हैं..
अहसान रहा इलज़ाम लगाने वालो का मुझ पर
उठती ऊँगलियो ने जहाँ मे मुझे मशहुर कर दिया |
राख बेशक हूँ मगर मुझ में हरकत है अभी भी..
जिसको जलने की तमन्ना हो..हवा दे मुझको…
तुम्हारी ये आम सी बातें,….
मुझे बहुत ख़ास लगती है……!!
अपने अहसासों को ख़ुद कुचला है मैंने,
क्योंकि बात तेरी हिफाज़त की थी.!