आखिर किस कदर खत्म कर सकते है…
उनसे रिश्ता..!
जिनको सिर्फ महसूस करने से…
हम दुनिया भूल जाते है..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आखिर किस कदर खत्म कर सकते है…
उनसे रिश्ता..!
जिनको सिर्फ महसूस करने से…
हम दुनिया भूल जाते है..
हमें उनसे कोई शिकायत नहीं;
शायद हमारी किस्मत में चाहत नहीं!
मेरी तकदीर को लिखकर तो ऊपर वाला भी मुकर गया;
पूछा तो कहा, “ये मेरी लिखावट नहीं”!
अलग बात है कि तु मुझे हासिल नहीँ है,,
मगर तेरे सिवा कोई मेरे प्यार के काबिल नहीँ है
उस ने एक ही बार कहा “दोस्त हू ”
फिर मैने कभी नही कहा “व्यस्त हू ” !!!
ज़ीना हराम कर रखा है, “मेरी इन आँखों ने,
खुली हो तो तलाश तेरी, बंद हो तो ख्वाब तेरे..
थक गया है गम भी अपनी
कलाकारी करते करते,
ऐ खुशी तु भी अपना
किरदार निभा दे जरा।
अपनी मर्जी से भी
दो चार कदम चलने दे ऐ जिंदगी,
तेरे कहने पे तो
बरसों चल रहे है…..
वो साथ थे तो
एक लफ़्ज़ ना निकला
लबों से,
दूर क्या हुए
कलम ने क़हर मचा दिया..!!
मुझे मौत में
जीवन के-
फूल चुनना है
अभी मुरझाना
टूटकर गिरना
और अभी
खिल जाना है
कल यहाँ-
आया था
कौन, कितना रहा
इससे क्या ?
मुझे आज अभी
लौट जाना है
मेरे जाने के बाद
लोग आएँ
अरथी सँभालें
काँधे बदलें
इससे पहले
मुझे खुद सँभलना है.
मौत आये
और जाने कब आये
अभी तो मुझे
सँभल-सँभलकर
रोज-रोज जीना
और रोज-रोज मरना है !
कभी फूलों की तरह मत जीना, जिस दिन खिलोगे…,, टूट कर बिखर जाओगे । जीना है तो पत्थर की तरह जियो; जिस दिन तराशे गए… “खुदा” बन जाओगे