तुम्हें ग़ैरों से कब
फुर्सत हम अपने ग़म से कब ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना न
तुम ख़ाली न हम ख़ाली.
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तुम्हें ग़ैरों से कब
फुर्सत हम अपने ग़म से कब ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना न
तुम ख़ाली न हम ख़ाली.
ना जाने किसकी
दुआओं का फैज़ है मुझपर,
मैं डूबता हूँ और दरिया उछाल देता है..
जब कभी खुद की
हरकतों पर शर्म आती है …..
चुपके से भगवान को भोग खिला देता
हूँ …..
काश कोई तो पैमाना होता मोहब्बत नापने का
तो शान से तेरे सामने आते सबुत के साथ
खिलाफत मे ज़िंदगी की ये हश्र भी हो गया,
मकबरा तो बही है पर मुर्दों ने,कब्रस्तान बदल दिये,
दर्द दिल का कैसे बयाँ करे भला अल्फाजो में हम
वो लफ्ज कहाँ से लायें जिसमे समा जायें सब गम”
हर भूख हर प्यास
हर मतलब को प्यार बताकर
लोगों ने यह अल्फ़ाज़ मैला कर दिया”
सूखे पत्ते की तरह बिखरे थे ए दोस्त,
किसी ने समेटा भी तो जलाने के लिए !
यही सोच कर उसकी हर बात को सच मानते थे
के
इतने खुबसूरत होंठ झूठ कैसे बोलेंगे
देखेंगे अब जिंदगी चित होगी या पट…….
हम किस्मत का सिक्का उछाल बैठे हैं….