भगवान मेरे साथ है

जब मुझे यकीन है के भगवान मेरे साथ है
तो इस से कोई फर्क नहीं पड़ता के कौन कौन मेरे खिलाफ है।।”

तजुर्बे ने एक बात सिखाई है…
एक नया दर्द ही…
पुराने दर्द की दवाई है…!
हंसने की इच्छा ना हो…
तो भी हसना पड़ता है…
कोई जब पूछे कैसे हो…??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है

ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों….
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.
“माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती..
यहाँ आदमी आदमी से जलता है…!

जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन
क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!

सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब….
बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता |

जीवन की भाग-दौड़ में –
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और
आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..

“खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..
चाहता तो हु की ये दुनिया बदल दूं ….
पर दो वक़्त की रोटी के जुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती दोस्तों

किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर,
‘ईश्वर’ बैठा है, तू हिसाब ना कर

मुहब्बत कर ली है

फिजाये जब झूमती है , ऐसा लगता है
तुमने मुझ पर इनायत कर दी है ।
प्रीत में तुम्हारे सजते है ,तो ऐसा लगता है
…. तुमसे मुहब्बत कर ली है ।
तेरा नशा इस कदर रच बस सा गया है
… मेरी रूह में , ऐ हमदम !
नाम तुम्हारा लेते है तो ,ऐसा लगता है
खुदा की इबादत कर ली है..

न जाने कब

न जाने कब खर्च हो गये , पता ही न चला….!
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वो लम्हे , जो छुपाकर रखे थे “जीने के लिए”…!!

मीठा बोलने वाले

मीठा शहद बनाने वाली मधुमक्खी
भी डंख मारने से नहीं चुकती
इसलिए होंशियार रहें…
बहुत मीठा बोलने वाले भी
‘हनी’ नहीं ‘हानि’ दे सकते है