दावे वो कर रहे थे हमसे बड़े बड़े
छोटी सी इल्तिजा की तो अँगूठा दिखा दिया…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
दावे वो कर रहे थे हमसे बड़े बड़े
छोटी सी इल्तिजा की तो अँगूठा दिखा दिया…
मैं अपनी इबादत खुद ही कर लूँ तो क्या बुरा है..?
किसी फकीर से सुना था मुझमें भी खुदा रहता है…!
मैं कितना भी कुछ कहता रहूँ ,
पर हर बात तुम्हारी अच्छी हैं !
चेहरा देख कर तू मेरा हैसियत का पता मत लगा,
“माँ” आज मुझे “मेरा राजा बेटा” कहकर बुलाती है|
तू जहाँ तक कहे उम्मीद वहाँ तक रक्खूँ,
पर, हवाओं पे घरौंदे मैं कहाँ तक रक्खूँ ।
दिल की वादी से ख़िज़ाओं का अजब रिश्ता है,
फूल ताज़ा तेरी यादों के कहाँ तक रक्खूँ ।
तालुकात बढ़ाने है तो
कुछ आदते बुरी भी सिख लो…
ऐब न हो..
तो लोग महफ़िलो में नहीं बुलाते..।
दुनिया के सारे रास्ते सीधे हैं
मुश्किल तो उन्हें होती है
जिनकी चाल ही तिरछी है |
हमारी बेरुखी की देन है बाज़ार की ज़ीनत
अगर हम में वफा होती तो यह कोठा नहीं होता |
यहाँ हर नज़र में मुमकिन नहीं बेगुनाह रहना,,,,,
बस मैं कोशिश करता हूँ
खुद की नज़रो में बेदाग रहूँ…!!
सब आते है
खैरियत पूछने
तुम आ जाओ तो
ये नौबत ही न आए ..!!