है क्या बिसात आखिर इश्क़ में वफादारी की,
जो कल था वो आज है ,मगर कल नहीं होता।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
है क्या बिसात आखिर इश्क़ में वफादारी की,
जो कल था वो आज है ,मगर कल नहीं होता।
चलो एक काम करते हैं
नफ़रत को बदनाम करते हैं |
दावे वो कर रहे थे हमसे बड़े बड़े
छोटी सी इल्तिजा की अँगूठा दिखा दिया..
कब से बैठा सोच रहा हूँ ये कैसी खुदाई है
मैंने अपनी सेल्फ़ी ली,तस्वीर तुम्हारी आई है।
दिल बेज़ुबाँ है
शायद इसका यही गुनाह है |
तुम रख ही ना सकीं मेरा तोफहा सम्भालकर
मैंने दी थी तुम्हे,जिस्म से रूह निकालकर |
तुमने पढ़ा होगा ग़ालिब, फ़राज़ , मीर को
हमने तो बस पढ़ा है खुद की तक़दीर को
मुझ से गिले हैं ..
मुझ पे भरोसा नहीं उसे …
ये सोच कर मैंने भी तो …
रोका नहीं उसे …. !!
जिंदगी का सच बस इतना ही है …….
कुछ उलझनें कब्र तक साथ जाती हैं|
दिल में अरमाँ न रखना कोई, मुझको जी भर के तड़पाइये
क्या ख़बर है कि कल आपको मुझसा पागल मिले न मिले |