आओ कभी यूँ भी मेरे पास कि, आने में ..
लम्हा और जाने में ज़िन्दगी गुज़र जाए !!!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आओ कभी यूँ भी मेरे पास कि, आने में ..
लम्हा और जाने में ज़िन्दगी गुज़र जाए !!!!
हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,
उतरता है जब भी खाबों की डगर को।
पा गये हो दोस्त तुम कुछ चार दिन के
भूल गये दोस्त, नाता पुराना साथ जिनके।
मै रंग हुँ तेरे चेहरे का….
जितना तू खुश रहेगा
उतना ही मै निखरती जाऊँगी.!!
हमको महसूस किया जायेगा खुशबु की तरह …. हम कोई शोर नहीं जो सुनाई देंगे !!
सच को तमीज़ नहीं बात करने की..
जुठ को देखो कितना मीठा बोलता है ।
मेरे गुनाहों की सज़ा तुझे मिली है आज माना
अब तो ताउम्र मुझे, अपनी सज़ा का इंतज़ार होगा ।।
जुड़ना सरल है…
पर
जुड़े रहना कठिन….
अनजाने शहर में अपने मिलते है कहाँ
डाली से गिरकर फूल फिर खिलते है कहाँ . . .
आसमान को छूने को रोज जो निकला करे
पिँजरे में कैद पंछी फिर उड़ते है कहाँ . . .
दर्द मिलता है अक्सर अपनो से बिछड़कर
टूट कर आईने भला फिर जुड़ते है कहाँ . . . .
ले जाते है रास्ते जिंदगी के दूर बहुत
मील के पत्थर जमे फिर हिलते है कहाँ . . .
दिल कहाँ कह पाता है औरों को अपनी भला
जख्म हुए गहरे गर फिर भरते है कहाँ . . . .
ले चल खुदा फिर मुझे मेरे शहर की ओर
जीने के अवसर भला फिर मिलते है कहाँ . .
लफ्ज़ लफ्ज़ उसकी यादो का मेरे ज़हन में दर्ज है
उसका इश्क़ ही इलाज है उसका इश्क़ ही मेरा मर्ज़ है|
क्या पता तुम कब भूल जाओ ये मोहब्बत…
जिसे हम ज़िन्दगी और तुम एक लफ्ज़ कहते हो…