मैं तुझे चांद कह दूं ये मुमकिन तो है मगर
लोग तुझे रात भर देखें ये गवारा नहीं मुझे|
Category: जिंदगी शायरी
मंजिल मिल ही जायेगी
मंजिल मिल ही जायेगी, भटकते हुए ही सही..
गुमराह तो वो हैं, जो घर से निकले ही नहीं।
तुम सावन का महीना
तुम सावन का महीना हो
मै तुझपे छाया हूँ झूले की तरह|
सजदों में भीगती है
सजदों में भीगती है जिनकी आखे वो लोग छोटी बातो पर रोया नहीं करते |
बैठ कर किनारे पर
बैठ कर किनारे पर मेरा दीदार ना कर मुझको समझना है तो समन्दर में उतर के देख !!
बस इतनी सी ख्वाहिश है
दिल की बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी तुमसे मुलाकात हो फिर अंजाम चाहे कुछ भी हो !!
तुम तो फुहार सी थीं….
तुम तो फुहार सी थीं….
पर तुम्हारी यादें… मूसलाधार हैं…
सुनते आये है
सुनते आये है की पानी से कट जाते है पत्थर,
शायद मेरे आँसुओं की धार ही थोड़ी कम रही होगी..!
क्या किस्मत पाई है
क्या किस्मत पाई है रोटीयो ने भी निवाला बनकर
रहिसो ने आधी फेंक दी, गरीब ने आधी में जिंदगी गुज़ार दी!!
तुम निकले ही थे
तुम निकले ही थे बन-सँवर कर
मैं मरता नहीं तो क्या करता…