मुझे तेरे ये कच्चे रिश्ते जरा
भी पसंद नहीं आते..,
या तो लोहे की तरह जोड़ दे,या फिर धागे की
तरह तोड़ दे..!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुझे तेरे ये कच्चे रिश्ते जरा
भी पसंद नहीं आते..,
या तो लोहे की तरह जोड़ दे,या फिर धागे की
तरह तोड़ दे..!!
कुछ ख्वाब देखे,फिर ख्वाहिश बनी,अब यादें है…
सुनो
तुम मेरी ज़िंदगी में शामिल हो ऐसे,
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मंदिर के दरवाज़े पर मन्नत के
धागे हों जैसे..!!
मुद्दतों बात किसीने पूछा कहा रहते हो
हमने मुस्कुरा के कहा अपनी औकात में
मस्जिद की मीनारें बोलीं, मंदिर के कंगूरों से .
संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से
कलम में जोर जितना है जुदाई की बदौलत है,
मिलने के बाद लिखने वाले लिखना छोड़ देते है……..
न दिल न ज़ज्बे न जोशे उल्फत,
तकल्लुफन मुस्करा रहा है.
वो अपने बेजान चेहरे पे,
जानदार चेहरे सजा रहा है.
वो खुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा..!
जिसे नफरत है उसके बनाये बन्दों से..!
हवाएँ ज़हरीली करने वाले,ये ज़मीं छोड़ ही दें तो अच्छा….
मेरी नेकनीयती पर करना यकीं छोड़ ही दें तो अच्छा….
उनकी कुलबुलाहट से अब मैं भी नहीं इतना “ग़ाफ़िल”..
अब कुछ साँप मेरी आस्तीं छोड़ ही दें तो अच्छा….
बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है ।