किताबों की तरह हैं हम भी….
अल्फ़ाज़ से भरपूर, मगर ख़ामोश…
Category: गरूर शायरी
फासलों से अगर..
फासलों से अगर.. मुस्कुराहट लौट आये तुम्हारी…
तो तुम्हे हक़ है.. कि तुम… दूरियां बना लो मुझसे….
तूने मेरी मोहब्बत की
तूने मेरी मोहब्बत की गहराईयों को समझा ही नहीं ऐ सनम..!
तेरे बदन से जब दुपट्टा सरकता था तो हम “अपनी” नज़रे झुका लेते थे..!
सितारों की फसलें
सितारों की फसलें उगा ना सका कोई
मेरी ज़मीं पे कितने ही आसमान रहे |
मकान बन जाते है
मकान बन जाते है कुछ हफ्तों में,
ये पैसा कुछ ऐसा है…और घर टूट जाते है चंद पलो में, ये पैसा ही कुछ ऐसा है..।।
मुमकिन नहीं है
मुमकिन नहीं है हर रोज मोहब्बत के नए, किस्से
लिखना……….!!
मेरे दोस्तों अब मेरे बिना अपनी, महफ़िल सजाना सीख
लो…….!!
तेरी नज़र पे
तेरी नज़र पे भी मुकदमा हो
तेरी नज़र तो क़त्लेआम करे…
गहरी नींद का मंज़र
उनकी गहरी नींद का मंज़र भी
कितना हसीन होता होगा..
तकिया कहीं.. ज़ुल्फ़ें कहीं..
और वो खुद कहीं…!!
गलियों की उदासी
गलियों की उदासी पूछती है, घर का सन्नाटा कहता है..
इस शहर का हर रहने वाला क्यूँ दूसरे शहर में रहता है..!
यूँ तो मशहूर हैं
यूँ तो मशहूर हैं अधूरी मोहब्बत के, किस्से बहुत से……………!!
मुझे अपनी मोहब्बत पूरी करके, नई कहानी लिखनी