ज़िन्दगी तूने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं|
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं|
मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशि ले लो,
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं|
हमने देखा है कई ऐसे ख़ुदाओं को यहाँ,
सामने जिन के वो सच मुच का ख़ुदा कुछ भी नहीं|
या ख़ुदा अब के ये किस रंग से आई है बहार,
ज़र्द ही ज़र्द है पेड़ों पे हरा कुछ भी नहीं|
दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह,
या तो सब कुछ ही इसे चाहिये या कुछ भी नहीं|