जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाया हूँ मैं,
बहुत मजबूत रिश्ते थे, बहुत कमजोर लोगो से….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाया हूँ मैं,
बहुत मजबूत रिश्ते थे, बहुत कमजोर लोगो से….
बर्ताव दोस्ती की हद से गुजर गए हैं।
या तुम बदल गए हो या हम बदल गए हैं
नाराज़गियों को कुछ देर चुप रह कर मिटा लिया करो
ग़लतियों पर बात करने से रिश्ते उलझ जाते हैं
कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ,…
परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे
आहिस्ता बोलने का उसका अंदाज़ भी कमाल था__!!
कानों ने कुछ सुना नहीं, पर दिल सब समझ गया!
तुम दूर हुए तो अहसास हुआ
के कई घंटे होते हैं दिन में।
कश्ती भी ना बदली,
दरिया भी ना बदला,
हम डूबने वालो का जज्बा भी ना बदला,
हे जोक -ए -सफर ऐसा ऐक उम्र से हमने,
मंजिल भी ना पाई और रास्ता भी ना बदला
उनके भीगे लबों की नरमी जैसी, कोई शराब जहां मे ऐसी है भी क्या साकी……..
क्यों भरोसा करता है गैरो पर, जबकि तुम्हें चलना है खुद के पैरो पर…….
“मोहब्बत की बर्बादी का क्या अफसाना था”..!!
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“दिल के टुकडे हो गये और लोगों ने कहा वाह क्या निशाना था”..!!