हर रोज तरीके से रखता हूँ,
हर रोज बिखर जाती हैं।
मेरी ज़िन्दगी हो गयी हैं बिलकुल,
टेबल पर पड़ी किताबो की तरह।
Author: pyarishayri
ये सोच कर रोज मिलते हैं
ये सोच कर रोज मिलते हैं हम उनसे,
शायद कभी तो पहली मुलाक़ात हो।
आज दर्द उतना ही हैं
आज दर्द उतना ही हैं मेरे भीतर,
जैसे शराब से भरा हुआ जाम।
अब और भरो तो छलक आएगा।
एक सुबह हो जाती हैं
एक सुबह हो जाती हैं हर शाम मेरी,
ऐसा भी एक रात रहती हैं मेरे दिन में।
जब से तुम्हारा पता
जब से तुम्हारा पता मालूम हुआ हैं।
पता नही क्या क्या भूल गया हूँ मैं।
तुमसे हारा मैं
तुमसे हारा मैं, जिस बात पर,
तुम्हारे बात ना करने की बात थी।
ये बेवजह मेंरा वजह ढूंढ
ये बेवजह मेंरा वजह ढूंढ लाना,
तेरी दी हुई आदतों में से ही एक हैं।
मैंने जैसे तुम्हे चाहा
मैंने जैसे तुम्हे चाहा,
तुमने चाहा कब?
अब ना करो प्यार की बातें,
फ़ोकट हुआ हैं प्यार अब।
वो अनजान चला है
वो अनजान चला है ईश्वर को पाने की खातिर..
बेख़बर को इत्तला कर दो की माँ-बाप घर पर ही है……….
परेशान देखता हूँ आजकल
देखता हूँ आजकल
चहेरे -चहेरे पर मैं एक , थकान देखता हूँ आजकल ,
जिसको देखो उसको, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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परिंदों को नोचते हुये,आसमान देखता हूँ आजकल ,
कश्तियों से लड़ते हुये , तूफान देखता हूँ आजकल ।।
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सरहद के इस पार , उस पार , जब से तनाव बढ़ा ,
चूड़ी,कँगन सब जेवर, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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बू जिनके लिबास से गई नहीं मज़लुमो के खून की,
उन्ही के हाथो में गीता – कुरान देखता हूँ आजकल ।।
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मुफलिस के चूल्हो की,राख भी भूख से बिलखती है
पिर को चद्दर,पत्थरों में भगवान् देखता हूँ आजकल ।।
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खाकी , खद्दर और ये सियासते इतनी गन्दी हो गई
मंदिर मस्जिद को , लहू – लुहान देखता हूँ आजकल ।।
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ख़ौफ़ कोई छिप के बैठा है , ज़रूर बेटी के दिल में, मैं
आईने में अक्सर एक , हैवान देखता हूँ आजकल ।।
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जवान बेटी के माथे पे ,रोज – रोज शिकन देख कर
फ़िक्र में डूबा हुआ , रोज मकान देखता हूँ आजकल ।।
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अँधे देखने,बहरे सुनने लगे,जो थे गूँगे चिल्लाने लगे
आदालतों में रोज बिकाऊ,ईमान देखता हूँ आजकल ।।
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कारखानो का धुँआ दिलासे दे दे कर पास बुलाता है
मुफलिसी के घर का बच्चा,जवान देखता हूँ आजकल ।।
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कहीं पत्थर तोड़ता है , कही बर्तन धोता है , बचपन,
नन्हे-नन्हे हाथो में,कायदे परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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हौसले देख कर मुझ को अब ,और आजमाने लगी है
ज़िन्दगी के रोज नये ,मैं इम्तेहान देखता हूँ आजकल ।।
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तन्हा था कल तक “पुरव” तमाम रिश्तों की भीड़ में,
सोहरत आते ही घर रोज मेहमान देखता हूँ आजकल ।।