वो अनजान चला है जन्नत को पाने के खातिर,
बेख़बर को इत्तलाह कर दो की माँ-बाप घर पर ही है।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो अनजान चला है जन्नत को पाने के खातिर,
बेख़बर को इत्तलाह कर दो की माँ-बाप घर पर ही है।